मुखड़ा
कब कहता है
दुखड़ा।
आपाधापी -
गुंडागर्दी
पहनी
शंकाओं ने वरदी
पूरे - भरे
समय ने माँगा
पल दो पल का टुकड़ा।
मन के भय
कितने निर्भय हैं
गहरे घावों से
संशय हैं
जीवन का चोला
लोगों ने
जितना सीया है
उतना उधड़ा।
एक सत्य के
रूप अनेक
लेकिन समय
अँगूठा टेक
दिल का खुला हुआ
आँगन भी
निकला सिमटा - सिकुड़ा।